Saturday, March 2, 2013

कहानी पूरी फिल्मी है





काला  पत्थर
कोयला
लुटेरे
अली  बाबा चालीस चोर
चोर  मचाए  शोर
राजनीती
दलाल
हम  साथ  साथ  है
खामोशी। 

Tuesday, February 19, 2013

लक्ष्मण रेखा और सीता



लक्ष्मण रेखा और सीता





रावण रूपी पाप को
जड़ समेत उखाड़ फैंकना हो

निरंकुश और सत्ता पिपासुओं के बीच
राजराज्य की उत्कृष्टता को जनना हो

मर्यादा, पत्नी धर्म और समर्पण की
पराकाष्ठा को जानना हो

तो

जरूरी है
सीता का
लक्ष्मण रेखा को लांघ जाना।

नारी जाति के विरुद्ध
चलाए जो रहे षडयंत्रों के
इस खतरनाक दौर में
हे नारी स्वाभिमान की प्रतीत सीते
तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम।

अगर तुम नहीं लांघती 
लक्ष्मण रेखा
तो कोई नहीं मनाता
दीपावली और विजय दशमी का पर्व
तुलसी
नहीं रच पाते
रामचरितमानस
कोई दल नहीं लेता
तेरे पति रूपी बैसाखी का सहारा
सत्ता की कुर्सी हथियाने के लिए
श्री राम
राम ही रहते।

आडंबर के आवरण से लेकर
लक्ष्मण रेखाओं की सीमा को
हर युग में
सीता को ही
तोड़ना होगा लांघना होगा

तभी तो परास्त होंगे असुर
तभी तो प्रज्वलित होगा प्रकाश
तभी तो स्‍थापित होगा धर्म
धर्म जिसकी जय हो
अधर्म जिसका नाश हो।

Wednesday, April 11, 2012

मेरी कविता

मैंने

उतार लाया है

रोता हुआ

शायद...हँसता हुआ

नहीं, रोने के बाद

हँसता हुआ

सफेद बादलों का एक फाहा

और उसे रख दिया है अपने जख्मों पर।

जब जख्मों से रिसता हुआ लहू

फाहे में सिमिट

मेरी कलम की स्याही बनता है

तभी तो में लिख पता हूँ

दर्द भरी

शायद...प्रेम भरी

नहीं, दर्द के बाद प्रेम भरी कविता।

देखो मेरी कविता में मैं हूँ

शायद...मेरी कविता में तुम हो

नहीं, मेरी कविता में मैं नहीं सिर्फ तुम हो।

मेरी कविता के हर्फ़ चमकते हैं

यह चमक सफ़ेद बादलों के फाहे ही है

शायद...यह चमक स्याही बने मेरे खून की है

नहीं, यह चमक तुम्हारे कविता हो

मेरे पन्ने पर उतर जाने की है।

मेरी कविता का इक भी

शब्द मेरी बात नहीं मानता

वह मुढ़ जाता है

तुम्हारे मोहल्ले, गली और

तुम्हारे घर की छत पर

उनको लगता है

रातों को तुम अब भी

मुझको ढूँढने निकल जाती होगी।

मेरी कविता बदसूरत है

अशोक वाटिका में

माँ सीता की सेवा में लगी त्रिजटा की तरह

शायद...मेरी कविता सुंदर है

मेनका के सोंदर्य की तरह

नही, मेरी कविता बदसूरती के बाद सुंदर है

भगवान श्री कृषण को दूध पिलाती पूतना की तरह।

मेरी कविया श्रापित है

अर्जुन के वृह्न्ल्ला बनने की तरह

शायद...मेरी कविता वरदानित है

माँ दुर्गा के हाथों मारे रक्त बीज की तरह

नहीं, मेरी कविता श्रापित हो वरदानित है

गौतम की आहिल्या की तरह।

मेरी कविता इकरंगी है

शायद...मेरी कविता बहुरंगी है

नहीं, मेरी कविता इकरंगी के बाद बहुरंगी है

जब मेरी कविता बहुरंगी बनती है

तो उस रिक्त स्थान पर

जिधर से मैं

बादलो का फाहा उतार लाया था

इक इन्द्रधनुष सा चमक जाता है।

Monday, April 9, 2012

दस्तूर

हुक्मरानों का
दस्तूर
भी अजीब है
नोकरी
सीना नाप कर देते हैं
पेट...
कोई नहीं नापता।

Friday, April 6, 2012

इस खतरनाक दौर में
मुन्नी बदनाम हुई
डार्लिंग तेरे लिये
मैं ज़ंदु बाम हुई
डार्लिंग तेरे लिए
मुझे पता है
आप सोच रहे हैं
यह कैसी कविता...
यह तो गाना है।
इसे छोड़ो
दूसरी कविता सुनाता हूँ
माय नेम इज शीला
शीला की जवानी
आय ऍम सो सेक्सी बट तेरे हाथ न आनी।
मुझे पता है आप फिर सोच रहे है
यह कैसी कविता?
मुझे क्या हो गया है
मैं अपनी कविता क्यों नहीं सुना रहा।
मैं आप से ही पूछता हूँ
अभियाक्तियो के दमन के
इस खतरनाक दौर में
मैं आप को ओर क्या सुना सकता हूँ
अगर मैं यह पूछ लू की धरती के स्वर्ग पर
तीन महीनो में
सौ से ज्यादा जवान क्यों मार दिए गए?
अगर मैं यह पूछ लू
वह लोग जीनोने
अंग्रेजो के साथ मिल कर
हमारी पीठ पर कड़े बरसाए
वह देशप्रेम को परिभाषित क्यों कर रहे हैं ?
अगर मैं दलितों, पिछडो की समर्थन में
कुछ शब्द बोल दू
तो इस बात की गारंटी कौन देगा
की मुझको भी जवानी के बीस साल
सलाखों के पीछे न गुज़ारने पडें
मुझ पर भी देशद्रोह का मुकैद्मा न चले
किसी झूठे केस में फंसा
जेल में न ठोक दिया जाये।
अभियाक्तियो के दमन के
इस खतरनाक दौर में
जब विश्व भर की सत्ताएं
हर खुलने वाले मुह में पिघला हुआ सीसा
उड़ेलने को तयार बठी है
ऐसे में
मैं आप को
और क्या सुना सकता हू।
ये वह दौर है
जब हमारा खाना, पीना
चलना, उठना, बठना, पहनना सब खतरे में है।
पता नहीं कब मेरी जवान बेटी
जींस पहन ले
या अपने किसी दोस्त के साथ
बाज़ार में काफी पीने चले जाये
और किसी जमायत या सेना का कार्यकर्ता
उस पर लात गूँसे न झड़ दे।
ये वह दौर है
जब आप अपने बेडरूम में
परिवार के साथ
बिकिनी पहने अभिनेत्री को
चार मुशटंडो के साथ
अपनी मांसल जवानी बेचते
या बदनाम होते देखे
और कुछ नहीं
हालाँकि
आप के पास इक विकल्प और भी है
यह फैसला आप को ही करना है
आप को क्या चाहीए
शीला की जवानी
बदनाम मुन्नी
या मेरी कविता........

Thursday, March 17, 2011

सभ्यता की कहानी


आओ सुनाऊं एक कहानी
एक था राजा एक थी रानी
राजा न इक कुत्ता पाला
उसके गले में पटटा डाला
रानी न इक बिल्ली पाली
नीली नीली आँखों वाली...
अगर भारतीय खानी नहीं सुननी
तो अरेबियन कहानी सुनो
अली बाबा और चालीस चोर
हाँ...मरजीना को नहीं भूलना
कहानी में वह भी जरूर होती है।
आगे बढने से पहले बताएं
क्या आपने कोई राजा या रानी देखी है
अगर हाँ तो भी
और अगर ना तो भी
उनके कुत्तों और बिल्लिओं से तो
जरूर पाला पड़ा होगा।
अगर आप किसी राजा या रानी को नहीं जानते
तो क्या कभी
आपकी मुलाकात अली बाबा या मरजीना से हुई है
अगर हाँ तो भी
और अगर नहीं तो भी
चालीस चोरों के हाथों
आपके खून पसीने की कमाई तो जरूर लुटी होगी.
पता नहीं क्यूँ
हर सभ्यता की कहानिओं में
वह चाहे यूनान हो, रोम, मिस्र, दिल्ली या बगदाद
राजा और रानी के साथ उनके कुत्तों और बिल्लिओं का
अली बाबा के साथ चालीस चोरों का
जिक्र जरूर होता है।
लेकिन मेरे दोस्त में आप से पूछता हूँ
की कल को जब में और आप इतिहास बन जायेंगे
तो क्या आप चाहेंगे की
हमारी सभ्येता की कहानियों में भी
राजा रानी के साथ
उनके कुत्ते और बिल्लिओं का
या अली बाबा और मरजीना के साथ
चालीस चोरों का जिक्र हो।
मेरे भाई यह तुम भी जानते हो
यह में भी जानता हूँ
यह राजा, रानी, अली बाबा और मरजीना भी जानती है
की
राजा रानिओं के आगे दूम हिलाने वालों से लेकर
लुटेरों के आगे आत्म समर्पण करने वालों के नाम
सभ्येताओं की कहानिया याद नहीं रखतीं।
यह हम पर है
हम गले में
पटटआ डलवाते है
दूम हिलाते है
उम्र भर की कमाई लुट वातें हैं
या एक साथ मिलकर
राजा, रानी, अली बाबा और मरजीना को
जड़ से उखाड़ने के लिए
जोर से जोर लगते हैं.

Saturday, January 22, 2011

मैं अर्जुन ही हूँ


मैं एक नहीं सहस्रों डंक सह लेता
अगर तुम परशुराम होते,
मैं अंगुलियां काटना छोड़ भिक्षु बन जाता
गर तुम तथागत होते,
तुम बनते विष्णु गुप्त
मैं तुम्हारा दास होता,
मैं दुनिया वार देता
अगर तुम अरस्तु होते।
लेकिन तुमने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया।
तुमने सिखाया द्रौपदी चीरहरण में नपुंसक बनना
चौसर के खेल में पांसों की धोखाधड़ी
जरूरत आन पड़े तो अंगूठे जमा करना
ऐसे चक्र वहू रचना ताकि निहत्था अभिमन्यु फांसा जा सके
अब क्यों हो परेशान
जब जीवन के कुरुक्षेत्र मैं
मैं खड़ा हूँ
तुम्हारे सामने
गांडीव लिए...
आखिर द्रौण का सामना
तो
अर्जुन को ही करना है.